कुछ बड़ा कर गुजरने की चाह में
भटकते रहता है तू इस जग की राह में।
जब तू ऊपर उठता है पीछे सब कुछ छूटता है
तब तू राम से मिलता है जो भीतर तेरे बस्ता है।
“राम” तो बस नाम है, पर नाम के होते बड़े काम है
बिना नाम के तू उसे कैसे जानेगा,
जो तेरे भीतर है उसे कैसे पहचानेगा।
मूँद नैन और देख भीतर, सब कुछ वहां पायेगा
जो कुछ वहां ना है, वह किसी काम भी नहीं आएगा।
ले राम का सहारा
यह जग होगा तुम्हारा
हर चाह का होगा निस्तारा
तर जाएगा यह संसारा।