निज के विस्तार के लिए एकांत आवश्यक है लंबी साँस के लिए खुला आसमान आवश्यक है
कुछ पल के लिए ही सही विचार शून्य हो जाना है
सब को भूलना है और निज के पार निकल जाना है
मूंदों आँखें और करो आभास
लेटे हो तुम किसी सागर के पास
ना कोई है ना होने का अहसास
सायद सुन पा रहे हो अपनी श्वास
जब तुम हो, संग है लहरों की आवाज़ और खुला आकाश
वह क्षण स्वतः आएगा, जब कुछ भी न होगा मन के पास
कुछ भी ना होगा अहसास, कि हुआ है कुछ ख़ास
तुम उठोगे अनायास, पुनः लौट जाओगे सब के पास
कहीं कभी दूर बैठे उस पल की स्मृति मनः स्थल पे आएगी
स्वतः ही एक मुस्कान, तुम्हारी आत्मा को तृप्त कर जाएगी